
पुणे. पुणे में गुइलेन बैरे सिंड्रोम (GBS) के मरीजों की संख्या बढ़ रही है, जिनमें से आधे से ज्यादा मरीज गंभीर हालत में हैं और उनका इलाज आईसीयू में चल रहा है. इस बीमारी के इलाज का औसत खर्च 5 लाख रुपये से अधिक आ रहा है. राज्य सरकार की महात्मा ज्योतिबा फुले जनआरोग्य योजना के तहत इस बीमारी का इलाज हो रहा है। अब पुणे नगर निगम भी गरीब मरीजों के इलाज के खर्च में योगदान करेगी।
पुणे में अब तक 73 जीबीएस मरीज सामने आए हैं, जिनमें से 14 मरीज वेंटिलेटर पर हैं। सामान्य तौर पर, छोटे अस्पतालों में इस बीमारी के इलाज पर 5 से 6 लाख रुपये, मध्यम अस्पतालों में 10 लाख रुपये, और बड़े अस्पतालों में यह खर्च 10 लाख रुपये से अधिक हो जाता है, जो आम आदमी की पहुंच से बाहर है।
महात्मा फुले जनआरोग्य योजना के तहत इस बीमारी के इलाज के लिए 2 लाख रुपये तक की मदद मिलती है, लेकिन इसके बाद के खर्च को लेकर मरीजों के परिवार परेशान हैं। ऐसे में पुणे नगर निगम ने गरीब मरीजों के इलाज में आर्थिक सहायता देने का फैसला किया है।
जीबीएस के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी और आईवीआईजी (इम्युनोग्लोबुलिन) दो तरह की विधियां इस्तेमाल होती हैं। प्लाज्मा थेरेपी का खर्च 3 से 3.5 लाख रुपये आता है, जबकि आईवीआईजी उपचार का खर्च 4 से 5 लाख रुपये तक पहुंच सकता है। इस थेरेपी में मरीज को हर दिन 5 से 6 इंजेक्शन देने पड़ते हैं, जिनकी कीमत 20 से 25 हजार रुपये प्रति इंजेक्शन होती है।
शहर के छोटे अस्पतालों में आईसीयू का दैनिक खर्च 10 हजार रुपये, वेंटिलेटर का खर्च 10 हजार रुपये है। 5 दिनों के इलाज का कुल खर्च 1 लाख रुपये हो जाता है। मध्यम अस्पतालों में यह खर्च 2 लाख रुपये, जबकि बड़े अस्पतालों में 5 लाख रुपये से अधिक हो सकता है।
जीबीएस के इलाज का संभावित खर्च:
दवाइयां: 3.5 से 4 लाख रुपये
आईसीयू: 50 हजार रुपये
वेंटिलेटर: 50 हजार रुपये
कुल खर्च: 4.5 से 5 लाख रुपये
कोट –
पुणे नगर निगम की स्वास्थ्य प्रमुख डॉ. नीना बोराडे ने बताया कि पिछले दो हफ्तों में पुणे शहर में मिले मरीजों को इस सहायता का लाभ मिलेगा. उन्होंने बताया कि नगर आयुक्त ने गरीब मरीजों की आर्थिक मदद के निर्देश दिए हैं, ताकि वे बेहतर इलाज प्राप्त कर सकें.