ताजा खबरपुणेमहाराष्ट्रशहर

मुलशी बांध पीड़ितों के लिए फिर जेल जाने को तैयार: वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. बाबा आढाव का ऐलान

Spread the love

 

पुणे। देश को स्वतंत्र हुए 75 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन मुलशी बांध पीड़ितों को आज भी न्याय नहीं मिला है। उन्हें मताधिकार तो मिला, लेकिन सम्मानजनक जीवन का अधिकार नहीं मिला। न उन्हें अपने हक का घर मिला, न ही गांव का पुनर्वास। इस बात पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए वरिष्ठ समाजसेवी और हमाल पंचायत के अध्यक्ष डॉ. बाबा आढाव ने कहा कि मुळशी बांध पीड़ितों की मांगों के लिए अब दोबारा सत्याग्रह करना पड़ेगा। उन्होंने स्पष्ट कहा, “मैं उम्र का बहाना नहीं बनाऊंगा, बल्कि मुळशी बांध पीड़ितों के हक के लिए फिर से जेल जाने को तैयार हूं।”

डॉ. आढाव मुलशी सत्याग्रह की शताब्दी के अवसर पर अखिल महाराष्ट्र मुलशी परिषद के उद्घाटन समारोह में बोल रहे थे। इस आयोजन का उद्देश्य मुळशी बांध पीड़ितों की लंबित मांगों पर चर्चा करना और राज्य के अन्य बांध पीड़ितों के साथ संवाद स्थापित करना था। इस अवसर पर अनिल पवार द्वारा संपादित पुस्तक ‘सह्याद्री के आँसू: बांध पीड़ित विस्थापितों का संघर्ष’ का विमोचन भी डॉ. आढाव के हाथों किया गया।

इस कार्यक्रम में नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर, समाजसेवी डॉ. भारत पाटणकर, लेखक डॉ. सदानंद मोरे, श्रीपाद धर्माधिकारी, सुनीति सु. र., लेखक कृष्णात खोत, विंदा भुस्कुटे, विजय भुस्कुटे सहित कई कार्यकर्ता और नेता उपस्थित थे।

डॉ. आढाव ने अपने संबोधन में कहा, “मुळशी के लोगों के खून में सत्याग्रह बसा हुआ है। सौ साल बाद भी उनकी मांगें पूरी नहीं हो पाई हैं।” उन्होंने याद दिलाया कि कुकडी बांध आंदोलन के दौरान पुलिस के साथ संघर्ष में उन्हें आंख में चोट लगी थी। उन्होंने बताया कि जब यशवंतराव चव्हाण ने बांध का भूमि पूजन किया था, तब उन्होंने वादा किया था कि पहले विस्थापितों को बसाया जाएगा, फिर बांध बनेगा। उनके संघर्षों के परिणामस्वरूप महाराष्ट्र पहला राज्य बना, जहां पुनर्वास कानून लागू किया गया। हालांकि, आज तक मुळशी बांध विस्थापितों के फैसले सिर्फ कागजों तक सीमित हैं, उनकी अमल में लाने की जरूरत है।

इस मौके पर मेधा पाटकर ने कहा, “मुलशी सत्याग्रह सत्ता और पीड़ितों के बीच का संघर्ष था। आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर भी मुळशी बांध पीड़ितों का न्याय के लिए इंतजार करना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।” उन्होंने मुलशी सत्याग्रह को नर्मदा बचाओ आंदोलन के लिए भी प्रेरणादायक बताया।

डॉ. भारत पाटणकर ने कहा, “पुनर्वास केवल आर्थिक सहायता नहीं है, बल्कि हमें हमारे पैरों पर खड़े होकर सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार मिलना चाहिए। बड़े उद्योगपतियों को जरूरत भर की जमीन मिल जाती है, तो फिर हम क्या जानवर हैं?”

कार्यक्रम में उपस्थित सभी नेताओं ने मुळशी बांध पीड़ितों की न्यायसंगत मांगों को लेकर संघर्ष जारी रखने का संकल्प लिया।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button