पुणे: बीसवीं सदी का काल तमाशे का स्वर्णकाल माना जाता है, और इसी दौर में लोकशाहीर पठ्ठे बापूराव नाम की एक किंवदंती उभरी। उनकी संगीत से जुड़ी अद्वितीय यात्रा को मराठी फिल्मी पर्दे पर उतारने की तैयारी चल रही है। इसी बीच, उनकी बहू श्रीमती नलिनी गोविंद कुलकर्णी ने खुद को पठ्ठे बापूराव की सभी चीजों की एकमात्र कानूनी वारिस बताया है।
इस संबंध में जानकारी देने के लिए श्रीमती नलिनी गोविंद कुलकर्णी ने पुणे में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की। उन्होंने कहा कि उनके ससुर, लोकशाहीर पठ्ठे बापूराव के नाम और उनके जीवन पर आधारित किसी भी फिल्म, वीडियो या किसी भी ऑडियो-वीडियो रूप में अन्य कलाकृति को बनाने, प्रदर्शित करने और बेचने का अधिकार उन्होंने दिनांक 23/07/2024 को पंजीकृत हस्तांतरण समझौते के माध्यम से श्री रणजीत गुगले, श्री मिलिंद सकपाल और श्री रोहन गोडांबे को दिया है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि इन तीनों के अलावा किसी को भी ‘लोकशाहीर पठ्ठे बापूराव’ के नाम का उपयोग करने या उनके जीवन पर आधारित किसी भी कलाकृति को बनाने, प्रदर्शित करने और बेचने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। अन्य कोई यदि ऐसा करता है, तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। यह फिल्म प्रो. चंद्रकुमार नलगे की पुस्तकों “महाराष्ट्राचे शिल्पकार पठ्ठे बापूराव” और “पठ्ठे बापूरावांच्या शोधात” पर आधारित होगी, और इन पुस्तकों के अधिकार भी लिखित रूप में इन्हीं तीनों को सौंपे गए हैं। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में पठ्ठे बापूराव के पोते अवधूत गोविंद कुलकर्णी और पोती अपर्णा गोविंद कुलकर्णी, निर्माता रणजीत गुगले, रोहन गोडांबे, निर्देशक मिलिंद सकपाल, और लेखक राहुल डोरले भी मौजूद थे।